Tuesday, 12 December 2023
Cleaning ears
क्या आप भी कॉटन बड्स से कान साफ करते हैं? जानिए ये कितना खतरनाक हो सकता है..??
शायद ही कोई घर होगा जिसमें ईयरबड्स का इस्तेमाल न होता हो..आजकल कान साफ करने के लिए बाजार में तरह तरह के कॉटन बड्स आ गए हैं...लेकिन अब सावधान हो जाएं चिकित्स्कों ने ईयरबड्स को इस्तेमाल करने से सख्त मना किया है। ईयरबड्स ही नहीं बल्कि अन्य चीजें जैसे माचिस की तिल्ली, पेन की नोक और झाड़ू की रुई लगी स्टिक कुछ भी कान में डाल कर ईयर वैक्स (जिसे हम मैल समझते हैं ) को निकालने की कोशिश नहीं करें।
ईयर वैक्स कानों के लिए अच्छी होती है। यह कान के परदे से पहले होता है। इसे शरीर खुद विकसित करता है यह लचकीला पदार्थ कानों की धूल, सूक्ष्मजीवों, पानी और फॉरिन पार्टिकल से सुरक्षा करता है। यह कान को साफ रखने में शरीर की मदद करता है।
ईयरबड्स के इस्तेमाल से नुकसान-:
जब हम ईयर बड्स से कान साफ करने की कोशिश करते हैं तो यह वैक्स बाहर आने की जगह ज्यादा अंदर चली जाती है और जब यह कान के परदे के पास पहुंच जाती है तो इससे सुनने की क्षमता पर असर आता है।
यह वैक्स कान की त्वचा को चिकनाई देता है जब वैक्स हटा दिया जाता है तो त्वचा रूखी हो जाती है जिससे बार बार खुजलाहट होती है और अंगुलियां कान में डालने से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
ईयर बर्ड्स पर लगी हुई रूई भले ही कोमल हो लेकिन इसके बार बार इस्तेमाल से कान की नसों को काफी नुकसान पहुंचता है।
कई बार यह ईयर बड्स के ज्यादा अंदर जाने से कान का पर्दा फट जाता है। ईयर बड्स के बार-बार इस्तेमाल से कान का छेद चौड़ा हो जाता है जिससे कान में धूल मिट्टी आसानी से जाने लगती है जिससे बार-बार खुजलाहट होती है और कानों को नुकसान होता है। ईयर बड्स के इस्तेमाल से फंगस इंफेक्शन होने की संभावना रहती है
◾अब कान की सफाई कैसे करें?
डॉक्टर कान की सफाई के लिए कॉटन बड्स के इस्तेमाल की मनाही करते हैं. देखा जाए तो रोज नहाते वक्त कान खुद ब खुद साफ हो जाते हैं. ये शरीर का मैकेनिज्म है कि कान का ईयरवैक्स समय समय पर खुद ही निकल जाता है. लेकिन अगर ज्यादा गंदगी है तो भी आपको कॉटन बड्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. अगर आपको कान साफ करना है तो आप कान में तेल की कुछ बूंदें डालकर छोड़ दीजिए. आप चाहें तो बेबी ऑयल इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके बाद कान को रुई से ढक लीजिए. कुछ ही देर में कान का मैल या ईयरवैक्स तेल के साथ बाहर आ जाएगा.
अगर कान में दर्द है या अन्य कुछ और दिक्कत हो रही है तो डॉक्टर से सलाह लें और उससे ही वैक्स निकलवाए।
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Saptarishi
इसे सेव कर सुरक्षित कर लें, ऐसी पोस्ट कम ही आती है..
कौन है सात महान सप्तर्षि...
ऋग्वेद में लगभग एक हजार सूक्त हैं, याने लगभग दस हजार मन्त्र हैं। चारों वेदों में करीब बीस हजार से ज्यादा मंत्र हैं और इन मन्त्रों के रचयिता कवियों को हम ऋषि कहते हैं। बाकी तीन वेदों के मन्त्रों की तरह ऋग्वेद के मन्त्रों की रचना में भी अनेकानेक ऋषियों का योगदान रहा है। पर इनमें भी सात ऋषि ऐसे हैं जिनके कुलों में मन्त्र रचयिता ऋषियों की एक लम्बी परम्परा रही। ये कुल परंपरा ऋग्वेद के सूक्त दस मंडलों में संग्रहित हैं और इनमें दो से सात यानी छह मंडल ऐसे हैं जिन्हें हम परम्परा से वंशमंडल कहते हैं क्योंकि इनमें छह ऋषिकुलों के ऋषियों के मन्त्र इकट्ठा कर दिए गए हैं।
आकाश में सात तारों का एक मंडल नजर आता है उन्हें सप्तर्षियों का मंडल कहा जाता है। उक्त मंडल के तारों के नाम भारत के महान सात संतों के नाम पर ही रखे गए हैं। वेदों में उक्त मंडल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की विस्तृत चर्चा मिलती है। प्रत्येक मनवंतर में अगल अगल सप्तऋषि हुए हैं। यहां प्रस्तुत है वैवस्वत मनु के काल के सप्तऋषियों का परिचय।
1. सप्तऋषि के पहले ऋषि जिनके पास थी कामधेनु गाय,
वशिष्ठ :- राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ को कौन नहीं जानता। ये दशरथ के चारों पुत्रों के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था।
कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था। वशिष्ठ ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया तो उन्हीं के कुल के मैत्रावरूण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया।
2. दूसरे महान ऋषि मंत्र शक्ति के ज्ञाता और स्वर्ग निर्माता,
विश्वामित्र:- ऋषि होने के पूर्व विश्वामित्र राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था, लेकिन वे हार गए। इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया। विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग करने की कथा जगत प्रसिद्ध है। विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था। लेकिन स्वर्ग में उन्हें जगह नहीं मिली तो विश्वामित्र ने एक नए स्वर्ग की रचना कर डाली थी। इस तरह ऋषि विश्वामित्र के असंख्य किस्से हैं।
माना जाता है कि हरिद्वार में आज जहां शांतिकुंज हैं उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इंद्र से रुष्ठ होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी। विश्वामित्र ने इस देश को ऋचा बनाने की विद्या दी और गायत्री मन्त्र की रचना की जो भारत के हृदय में और जिह्ना पर हजारों सालों से आज तक अनवरत निवास कर रहा है।
3. तीसरे महान ऋषि ने बताया ज्ञान विज्ञान तथा अनिष्ट निवारण का मार्ग,
कण्व:- माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था...103 सूक्तवाले ऋग्वेद के आठवें मण्डल के अधिकांश मन्त्र महर्षि कण्व तथा उनके वंशजों तथा गोत्रजों द्वारा दृष्ट हैं। कुछ सूक्तों के अन्य भी द्रष्ट ऋषि हैं, किंतु 'प्राधान्येन व्यपदेशा भवन्ति' के अनुसार महर्षि कण्व अष्टम मण्डल के द्रष्टा ऋषि कहे गए हैं। इनमें लौकिक ज्ञान विज्ञान तथा अनिष्ट निवारण सम्बन्धी उपयोगी मन्त्र हैं। सोनभद्र में जिला मुख्यालय से आठ किलो मीटर की दूरी पर कैमूर श्रृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित कण्व ऋषि की तपस्थली है जो कंडाकोट नाम से जानी जाती है।
4. चौथे महान ऋषि जिन्होंने दुनिया को बताया विमान उड़ाना,
भारद्वाज:- वैदिक ऋषियों में भारद्वाज ऋषि का उच्च स्थान है। भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। भारद्वाज ऋषि राम के पूर्व हुए थे, लेकिन एक उल्लेख अनुसार उनकी लंबी आयु का पता चलता है कि वनवास के समय श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता द्वापर का सन्धिकाल था। माना जाता है कि भरद्वाजों में से एक भारद्वाज विदथ ने दुष्यन्त पुत्र भरत का उत्तराधिकारी बन राजकाज करते हुए मन्त्र रचना जारी रखी।
ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं और एक पुत्री जिसका नाम 'रात्रि' था, वह भी रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा मानी गई हैं। ॠग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा भारद्वाज ऋषि हैं। इस मण्डल में भारद्वाज के 765 मन्त्र हैं। अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं। 'भारद्वाज स्मृति' एवं 'भारद्वाज संहिता' के रचनाकार भी ऋषि भारद्वाज ही थे।
ऋषि भारद्वाज ने 'यन्त्र-सर्वस्व' नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी
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